karwa chauth : पहली बार रख रहे हैं करवा चौथ का व्रत तो इन बातों का ...

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 दोस्तों आज हम यहां जानेंगे कि करवा चौथ क्या है क्यों रखते लोग करवा चौथ का व्रत तथा इससे जुड़े कुछ धार्मिक मान्यताएं के बारे में।

दोस्तों हिंदू मान्यता के अनुसार यह पर्व कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है करवा चौथ को करक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है करवा या करक का मतलब होता है मिट्टी से बना हुआ कोई पात्र इस व्रत में चंद्रमा को अर्ध्य अर्थात जल अर्पण मिट्टी से बने पात्र से ही दिया जाता है उसी कारण इस पूजा में करवा का विशेष महत्व हो जाता है करवा के बाद करवा को या तो अपने घर में संभाल कर या तो किसी ब्राह्मण या किसी योग्य महिला को दान में भी देने का विधान है करवा चौथ का व्रत पंजाब ,राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है !

परंतु इस वैश्वीकरण युग में एक दूसरे को देख कर अन्य प्रांत के लोग भी इस व्रत को धूमधाम से मनाने लगे है।

क्यों मनाया जाता करवा चौथ का व्रत- 

दोस्तों करवा चौथ का व्रत केवल सुहागन स्त्रियां ही रहती हैं सुहागन स्त्रियां अपने पति के लंबी आयु के लिए दांपत्य जीवन के सुख- समृद्धि और अखंड सौभाग्यवती की कामना के लिए करवा चौथ का व्रत रहती हैं इस व्रत में स्त्रियां पूरे दिन पूरे दिन मतलब सूर्योदय से लेकर चंद्रमा के दर्शन तक बिना अन्ना और जल के सेवन किए बिना अर्थात निर्जल व्रत रहती हैं तथा रात में पूजा करने के बाद ही अन्ना तथा जल ग्रहण करती हैं करवा चौथ के पर्व में स्त्रियो को पूरे दिन व्रत के बाद रात में चंद्रमा देखने का विधान है ।

सुहागन महिलाएं रात में भगवान शिव तथा माता पार्वती की तथा कार्तिक और गणेश जी की भी साथ-साथ पूजा करती हैं उसके बाद चंद्रोदय होने के बाद आकाश में जब चंद्रमा दिखाई देता है तब सुहागन महिलाएं जो व्रत रहती हैं वह चंद्रमा को अर्ध्य देती हैं !

और छलनी से चंद्रमा को देखती हैं उसके बाद उसी छलनी से अपने पति को भी देखती हैं पुनः महिलाएं अपने पति के हाथ से ही पानी पीती हैं और अपना व्रत तोड़ती हैं इस तरह से वह अपना व्रत पूरा करती हैं उसके बाद से वे अपनी पसंद का भोजन ग्रहण करती हैं।

करवा चौथ से जुड़ी पौराणिक कथाएं- 

पौराणिक कथाओं के अनुसार जब सत्यवान की आत्मा को लेने के लिए यमराज आए तब प्रति व्रता सावित्री ने उनसे अपने पति सत्यवान के प्राणों की भीख मांगी और अपने सुहाग को ना ले जाने के लिए निवेदन किया यमराज के ना मानने पर सावित्री ने अन्न ,जल का त्याग कर दिया और अपने पति के शरीर के पास विलाप करने लगी पतिव्रता स्त्री के इस विलाप से यमराज दुखी हो गया और उन्होंने सावित्री से कहा कि अपने पति सत्यवान जीवन के अतिरिक्त कोई भी दूसरा वरुन से मांग ले सावित्री ने यमराज से कहा की आप मुझे कई संतानों की मां बनने का वरदान दे जिससे यमराज ने हां कर दिया पतिव्रता स्त्री होने की वजह से सत्यवान के अतिरिक्त और किसी अन्य पुरुष के बारे में सोचना भी सावित्री के लिए संभव नहीं था अंत में अपने वचन में बंध जाने के कारण एक पतिव्रता स्त्री के सुहाग को यमराज नहीं लेकर जा सकते हो और सत्यवान की जीवन को सावित्री को सौंप दिया ।

कहा जाता है , कि तब से स्त्रियां अन्न, जल का त्याग करके अपने पति की दीर्घायु की कामना करते हुए करवा चौथ का व्रत रखती हैं।

 इससे जुड़ी एक और पौराणिक कथा है, पुराणों में द्रोपति द्वारा करवा चौथ का व्रत रखने की कहानी भी प्रचलित है , 

 कहते हैं कि जब अर्जुन नीलगिरी की पहाड़ियों में घोर तपस्या के लिए गए हुए थे तो बाकी चारों पांडवों को पीछे से अनेक गंभीर समस्या का सामना करना पड़ा था द्रोपति ने भगवान श्रीकृष्ण से मिलकर अपना दुख बताया और अपने पतियों के मान सम्मान के रक्षा के लिए कोई उपाय पूछा भगवान श्री कृष्ण ने द्रौपदी को करवा चौथ का व्रत रखने की सलाह दी थी जिस व्रत को करने से अर्जुन भी सकुशल वापस लौट आए और बाकी पांडवों के सम्मान की भी रक्षा हो सका।


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